सरकारी बयान: NSSO की रिपोर्ट का ठीक से अध्ययन करें पत्रकार
- स्वच्छता और आंकड़ों के विषय में नीति निर्माताओं और पत्रकारों की आम राय नहीं बन सकी| पत्रकारों द्वारा लिखी रिपोर्टों को भ्रामक और असत्य मानते हुए सरकार ने एक बयान जारी करके कहा है कि पत्रकार पढ़ लिख कर विवेचन करके सरकारी रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया दें|
सरकार का कहना है कि एनएसएसओ (राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन) द्वारा कराए गए तीव्र स्वच्छता सर्वेक्षण के निष्कर्षों को मीडिया ने गलत तरीके से उद्धरित किया गया है साथ ही साथ गलत निष्कर्ष निकाले गए हैं। इतना ही नहीं, जारी किये गए एक सरकारी बयान में कहा "मीडिया की इन खबरों में निकाले गए निष्कर्ष न केवल तथ्यात्मक दृष्टि से गलत हैं, बल्कि उनकी व्याख्या भी गलत तरीके से की गई है"।
सरकारी बयान में इस्तेमाल कर्ताओं से अपेक्षा की गयी है कि वे परिशिष्टों सहित, स्वच्छता स्थिति रिपोर्ट का, विशेष रूप से 'कन्सेप्ट्स और डेफिनेशन्स' यानी 'अवधारणाओं और परिभाषाओं का विस्तार से अध्ययन करें, ताकि उसके निष्कर्षों को सही सही और पूर्ण रूप से समझा जा सके।
साथ ही साथ सरकार ने जरुरी माना है कि सभी सम्बद्ध पक्षों को तथ्यों की सही स्थिति और सही व्याख्याओं से अवगत कराया जाये। सरकारी एजेंसी ने सर्वेक्षण के सभी सम्बद्ध पक्षों की जानकारी के लिए स्पष्टीकरण भी जारी किये हैं| स्पष्टीकरण के लिए जारी बयान में बताया गया है कि स्वच्छता की स्थिति के बारे में तीव्र सर्वेक्षण के लिए अवधि मई-जून 2015 थी, अत: 45.3 प्रतिशत ग्रामीण स्वच्छता कवरेज सहित, स्वच्छता स्थिति रिपोर्ट के सभी निष्कर्ष, केवल जून 2015 तक की अवधि से संबद्ध हैं। जाहिर है कि ये निष्कर्ष लगभग दो वर्ष पुराने है, और स्वच्छ भारत अभियान की केवल नौ महीने की अवधि से संबद्ध हैं। साथ ही सर्वेक्षण में भारत सरकार द्वारा बनाए गए शौचालयों की संख्या के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है।
गौरतलब है कि सर्वेक्षण रिपोर्ट में वास्तविक संख्या न देते हुए शौचालय की सुविधा रखने वाले परिवारों का प्रतिशत; और शौचालयों में इस्तेमाल के लिए पानी तक पहुंच रखने वाले परिवारों (उन परिवारों में जो शौचालय रखते हैं) का प्रतिशत ही बताया गया है। सर्वेक्षण के परिणामों से पता चलता है कि शौचालय रखने वाले सभी परिवारों में से ग्रामीण क्षेत्रों में 9% और शहरी क्षेत्रों में 99% परिवारों की पहुंच इन शौचालयों के लिए पानी तक थी।
आंकड़ों में कैसे उलझा स्वच्छता सर्वेक्षण
- एनएसएसओ (राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन) द्वारा कराए गए तीव्र स्वच्छता सर्वेक्षण की रिपोर्ट के पैरा 8.10.1, में निम्नांकित जानकारी दी गई है:
“ग्रामीण भारत में, 42.5% परिवारों की पहुंच शौचालयों में इस्तेमाल के लिए पानी तक पायी गई.”
कुछ आलेखों में इससे यह निष्कर्ष निकाला गया कि शौचालय रखने वाले परिवारों में से केवल 42.5 प्रतिशत की पहुंच पानी तक है। यह व्याख्या गलत है।
सरकारी एजेंसी ने चेताया है कि उक्त सूचना को सही संदर्भ में यूँ समझा जाना चाहिए कि ग्रामीण क्षेत्रों में सभी परिवारों में से केवल 42.5% परिवारों को शौचालयों के लिए पानी उपलब्ध है। यदि आप इस बात पर विचार करें कि शौचालय रखने वाले परिवारों में से कितने प्रतिशत परिवारों की पहुंच पानी तक है, तो हम बताना चाहते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालय रखने वाले कुल परिवारों में से 93.9% और शहरी क्षेत्रों में 99% परिवारों की पहुंच इन शौचालयों के लिए पानी तक थी।
गौरतलब है कि उक्त रिपोर्ट में घरेलू अपशिष्ट जल की निकासी के बारे में बताया गया था, जिसमें रसाई आदि से अपशिष्ट जल शामिल था और शौचालयों का मलजल उसमें शामिल नहीं था।
स्रोत : http://pib.nic.in/newsite/hindirelease.aspx?relid=61061
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