माफ़ कीजियेगा... अब शायद बात हाथ से निकल चुकी है!
एक राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त और पुरस्कृत विद्वान लिखते हैं "कल पढ़ा था कि जनक और एक ऋषि से बात कर रहे थे। जनक नें पूछा, प्रकाश कौन देता है। ऋषिवर बोले सूर्य। सुर्य न हो तो चंद्रमा चंद्रमा न हो तो, ध्वनि, पुकार के सहारे मंज़िल तक पहुँचा जा सकताहै ध्वनि भी न हो तो आत्मा का प्रकाश जनक चुप हो गए। लेकिन आज तो सूर्य चंद्रमा पर धूल धुआ छाए हैं। आवाज़ें बंद कर दी गईं। आत्मा ही नहीं बची तो प्रकाश कहां से आएगा। पता नहीं जनक यह पूछते तो ऋषिवर क्या कहते"। जिस प्रकार राजा जनक की चर्चा में ऋषिवर अनाम हैं उसी तरह यहाँ विद्वत शिरोमणि का जिक्र जरुरी नहीं लेकिन देश के राजनैतिक हालातों में ज्ञान-विज्ञानं और साहित्य के बौद्धिक क्षरण का मूल्याङ्कन जरुरी हो जाता है| यह मूल्याङ्कन इसलिए भी जरुरी है क्योंकि प्रमाणिकता और परिभाषा गढ़ रहे महानुभावों को अपने कहने और जीने का भेद साफ़ हो सके| मुजफ्फर नगर की ऐतिहासिक विरासत एक होने को अग्रसर एक ऋषिवर हैं, उनकी देखभाल में सेंट्रल पोल्लुशन कंट्रोल बोर्ड बना, इंजिनियर थे इसलिए बोर्ड की स्थापना हुई तो मेम्बर सेक्रेटरी भी बने, सरकार के तकनीकी सलाहकार