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Showing posts from March 25, 2012
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माटू जनसंगठन ग्राम-छाम, पथरी भाग-4 व पो0  सुभाषगढ़  वाया लक्सर  जिला-हरिद्वार, उत्तराखंड पत्र व्यवहार का पता: डी 334/10, गणेश नगर, पाण्डव नगर काॅम्पलेक्स, दिल्ली-110092 < matugnaga.blogspot.com > फोन- 09718479517 ------------------------------ ------------------------------ ------------------------------ ------------------------------ ------------------------------ ------------------------------ ------------------------------ ------------------------------ -------------------- प्रैस विज्ञप्ति                                                                                                                                                                                   26-3-2012 ‘‘बड़े बांध नहीः स्थायी विकास चाहिये‘‘ उत्तराखंड राज्य में बड़े बांधो की नही वरन् पहाड़ के लिये स्थायी विकास हेतु प्राकृतिक संसाधनों के जनआधारित उपयोग की जरुरत है। राज्य में नयी सरकार के नये मुख्यमंत्री ने राज्य में उर्जा उत्पादन को बढ़ाने की बात की है। यह ब्यान अपने में एक भय दिखाता है। इसका अर्थ जाता
गंगा का दूसरा कोई विकल्प नहीं है। -भरत झुनझुनवाला गंगा की मनोवैज्ञानिक शक्ति स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद जब गंगा पर बनाए जा रहे बांधों को रोकने की मांग को लेकर आमरण अनशन पर बैठे तो सरकार उनकी मांग को पूरा न सही आंशिक रूप से मानने पर सहमत हुई , जिस पर उन्होंने अपना अनशन समाप्त किया , लेकिन बाद में इस पर कोई अमल न होते देख वह पुन: अनशन के लिए विवश हुए। एक बार फिर सरकार ने देर से उनके अनशन की सुधि ली और उनकी मांगों पर विचार का आश्वासन दिया। इसके फलस्वरूप उन्होंने अपना अनशन वापस ले लिया है। ऐसे में कुछ मूल प्रश्नों पर विचार करना आवश्यक हो गया है कि आखिर ऐसा क्यों हुआ ? सरकार के सामने जनता को बिजली उपलब्ध कराने की समस्या है। इस लिहाज से गंगा पर बनाए जा रहे बांधों के निर्माण को रोकना उचित नहीं प्रतीत होता। मैदानी क्षेत्र में कृषि उत्पादन बढ़ाने और जनता का पेट भरने के लिए गंगा के पानी को नहरों में डालना जरूरी है। गंगा के किनारे बसे तमाम शहरों के गंदे पानी का ट्रीटमेंट करने में हजारों करोड़ रुपये लगेंगे , जिसके लिए अतिरिक्त टैक्स लगाना होगा। दोनों ही पक्ष जनहित के नाम पर अपना-अप
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हमारी नदी प्रणालियों के विनाश का नया अध्याय 1980 के दशक में नई उदार आर्थिक नीतियों के अपनाने के साथ शुरू हुआ।   परिचय हमारी नदी प्रणालियों के विनाश का नया अध्याय 1980 के दशक में नई उदार आर्थिक नीतियों के अपनाने के साथ शुरू हुआ। सच्चाई को छुपाने के लिये 1986 में गंगा एक्शन प्लान –1 शुरू किया गया था। विदेशी कंपनियों की कमाई तो हुई पर गंगा स्वच्छता अभियान पूरी तरह विफल हो गया और जानकार मानते हैं कि गंगा नदी की दुर्दशा पहले से ज्यादा बदतर हो गई। शासन असली मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाने में जरूर कामयाब रहा और स्वछता अभियान की आड़ में नदी प्रणाली को एक-एक करके नष्ट कर दिया गया था। इस पृष्ठ भूमि में हमें राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण की आड़ में असली खेल को समझना होगा भारत में अनादिकाल से ही गंगा जीवनदायिनी और मोक्ष दायिनी रही है, भारतीय संस्कृति, सभ्यता और अस्मिता की प्रतिक रही हैं। गंगा जी की अविरल और निर्मल सतत् धारा के बिना भारतीय संस्कृति की कल्पना नहीं की जा सकती। गंगा जी को सम्पूर्णता में देखने और समझने की आवश्यकता है। गंगा केवल धरती की सतह पर ही नह