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Showing posts from June 6, 2012

इस विचित्र देश के कुछ दुर्लभ सीन जिस देश में गंगा बहती है-I

हमारा देश एक विचित्र देश है. जितना विचित्र हमारा देश है. उससे कहीं अधिक विचित्र हमारे नेता लोग हैं. कोई ऐसा मुद्दा जिस में कुछ भी राजनीति करने की गुंजाइश हो उसको हमारे नेता लोग किस तरह लपकते हैं यह व्यंग उसका उदाहरण हैं. पेश है एक ऐसा ही मुद्दा - दिनांक १६ अगस्त - कलमाड़ी ने सुप्रीम कोर्ट में जमानत के लिए अपील की. उनका कहना है की वह उन्होंने जो भी पाप किये है उनको वह गंगा में नहाकर धोना चाहते हैं.  इसको लेकर अपने समर्थन में उन्होंने तमाम ग्रंथों और पुराणों का हवाला दिया.   दिनांक १७ अगस्त - १२ बजे -  सुप्रीम कोर्ट ने धर्म कर्म में उनकी आस्था को देखते हुए उनकी जमानत ४ दिनों के लिए मंजूर की. (क्यूंकि कोर्ट पहले भी आस्था के आधार पर अपना फैसला एक और मुकदमे में दे चुकी है.) १ बजे- प्रधानमंत्री ने गंगा की सफाई के लिए १००० करोड़ की अतिरिक्त राशि मंजूर की. २ बजे -  येदीयुरप्पा ने भी कर्नाटक से लेकर हरिद्वार तक की यात्रा का ऐलान किया. ३ बजे -  कलमाड़ी ने समस्त भ्रष्ट कांग्रेसियों से अपने पाप धोने की अपील की. उन्होंने कहा कि वह दिल्ली से हरिद्वार तक पैदल यात्रा करेंगे. उन्होंने समस्त

सरकारी कर्मकांड, गंगा भक्त, आम जनता और गंगा संस्कृति

जून, 2112 की शाम । वाराणसी के गंगा रोड के किनारे बीयर बार की दुकान पर बैठे पाँच युवा मित्र। एक-एक बोतल पी लेने के बाद आपस में चहकते हुए……… तुमको पता है ? ये जो सामने 40 फुट चौड़ी गंगा रोड है न ! वहां आज से 100 साल पहले तक गंगा नदी बहती थी ! हाँ, हाँ पता है। आज भी बहती है। सड़क के नीचे नाले के रूप में। सच्ची ! आज भी बहती है ? पहले नदी बहती थी तो उस समय पानी बीयर से सस्ता मिलता होगा ! बीयर से सस ्ता ! अरे यार, बिलकुल मुफ्त मिलता था। चाहे जितना नहाओ, चाहे जितना निचोड़ो। और तो और मेरे बाबा कहते थे कि उस जमाने में यहाँ, जहाँ हम लोग बैठ कर बीयर पी रहे हैं, गंगा आरती हुआ करती थी। ठीक कह रहे हो। मेरे बाबा कहते हैं कि यहां से वहाँ तक इस किनारे जो बड़े-बड़े होटल बने हैं न, लम्बे-चौड़े घाट हुआ करते थे और नदी में जाने के लिए घाट किनारे पक्की सीढ़ियाँ बनी थीं। तब तो नावें भी चलती होगी नदी में ? गंगा रोड के उस किनारे जो लम्बा ब्रिज है वो दूसरा किनारा रहा होगा क्यों ? और नहीं तो क्या दूर-दूर तक रेतीला मैदान हुआ करता था, जहाँ लोग नैया लेकर निपटने जाते थे और लौटते वक्त नाव में बैठ कर भांग बूटी

गंगा बैराज कानपुर : गंगा के अस्तित्व को चुनौती

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गंगा बैराज शहर के विस्तारीकरण की एक महत्वकांक्षी योजना जैसा प्रतीत होता है. कहना मुश्किल है कि रिवर व्यू अपार्टमेन्ट और फूलों फव्वारों वाले पार्कों की तैयारी में लगा विकास प्राधिकरण शायद पुराने कानपूर, तिवारी घाट, रानी घाट और साथ लगे ह ुए हिस्सों को बंद आँखों से देखता है या कर्ज देने वालों की शर्त है कि उस तरफ न देखा जाए. रामकी एनवायरो इंजिनीयर्स और जियो मिलर जैसी कम्पनियाँ किस श्रद्धा के साथ गंगा सेवा में जुडी हैं यह तो मौके की मुआयना करने वालों को नज़र आ जाता है. अंतर निहित उद्देश्यों और दूरगामी परिणामों की बात न भी करें तो भी यह अनायास ही नज़र आ जाता है कि सरकारी परियोजनाएं सफ़ेद हाथी बनती हैं तो कैसे? संवाद करने से ऐसा लगता है कि स्थानीय लोगों को गंगा बैराज के नफे नुकसान से कोई सरोकार नहीं न ही सरकार या सरकारी तंत्र को इसकी को परवाह है.. कच्चे पक्के मकान, टूटी सड़के, बजबजाती नालियाँ, और गंगा जी में प्रत्यक्ष प्रवाहित होते नालों को देख कर तो कतई नहीं कहा जा सकता है कि इस परियोजना का उद्देश्य गंगाजी की निर्मलता या जनसामान्य के भले के लिए किया गया है. ये तो तात्कालिक परिस्थितियां है